
अमर सुहाग की कामना का पर्व: गणगौर
गणगौर पर्व भारतीय संस्कृति में महिलाओं के सौभाग्य और पतिव्रत धर्म का प्रतीक है। यह पर्व विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, और गुजरात के कुछ इलाकों में मनाया जाता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को महिलाएं भगवान शिव (गण) और माता पार्वती (गौर) की पूजा करती हैं, जिससे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं。
गणगौर पूजा की विधि और परंपराएं
गणगौर पूजा होली के अगले दिन से शुरू होकर सोलह दिनों तक चलती है। इस दौरान महिलाएं प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर बगीचे से दूब और फूल लाकर गणगौर माता को अर्पित करती हैं。 चैत्र शुक्ल द्वितीया के दिन नदी, तालाब या सरोवर के किनारे जाकर गणगौर की मूर्तियों को जल अर्पित किया जाता है, जिसे गणगौर माता को पानी पिलाना कहा जाता है। अगले दिन उनकी विधिवत रूप से विदाई और विसर्जन किया जाता है。
जयपुर में गणगौर महोत्सव की भव्यता
राजस्थान, विशेषकर जयपुर में, गणगौर महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहां की शोभायात्रा में सजी-धजी पालकियां, ऊंट, घोड़े, हाथी, और लोक कलाकारों की प्रस्तुतियां होती हैं, जो इस पर्व की भव्यता को दर्शाती हैं。 त्रिपोलिया गेट से निकलने वाली इस शाही सवारी में राजपरिवार के सदस्य भी शामिल होते हैं, जो परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है。
गणगौर व्रत का आध्यात्मिक महत्व
मान्यता है कि इस दिन देवी पार्वती ने सबसे पहले पूजा करने वाली निर्धन स्त्रियों को वस्त्र, आभूषण सहित सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था, तथा बाद में आने वाली सम्पन्न स्त्रियों को रक्त सुहाग देते हुए पतिव्रता एवं सौभाग्यशाली होने का आशीर्वाद दिया। भगवान शिव ने भी इस दिन देवी पार्वती को आशीर्वाद दिया कि जो स्त्री इस व्रत का पालन करेगी, उसके पति चिरंजीवी रहेंगे और अंत में मोक्ष प्राप्त करेंगे。
गणगौर पर्व भारतीय संस्कृति में महिलाओं के सौभाग्य और पतिव्रत धर्म का प्रतीक है। यह पर्व विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, और गुजरात के कुछ इलाकों में मनाया जाता है। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को महिलाएं भगवान शिव (गण) और माता पार्वती (गौर) की पूजा करती हैं, जिससे विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी दांपत्य जीवन की कामना करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं。
(विभूति फीचर्स)
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