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शिमला समझौता: शांति के 1972 के स्तंभ पर बना नया विवाद

सिंधु जल संधि के बाद पाकिस्तान की धमकी ने फिर से हिला दिया द्विपक्षीय समझौता का ढांचा

— तराई क्रांति समाचार ब्यूरो

शिमला समझौता (या सिमला एग्रीमेंट) एक द्विपक्षीय शांति संधि है, जिसे 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के बाद कश्मीर में नियंत्रण रेखा निर्धारित करने और सभी विवादों का शांतिपूर्ण समाधान द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से सुनिश्चित करने के उद्देश्य से हस्ताक्षरित किया गया था। हाल ही में भारत ने 24 अप्रैल 2025 को सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) निलंबित करने के बाद, पाकिस्तान ने कूटनीतिक मोर्चे पर पलटवार करते हुए शिमला समझौते को “अस्थायी रूप से” निलंबित कर दिया । पाकिस्तान का यह क़दम राजनयिक संबंधों, सीमा प्रबंधन और जल साझेदारी सहित कई क्षेत्रों में तनाव को गहरा कर सकता है, हालांकि अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत एक-पक्षीय रद्दीकरण की सीमाएँ भी मौजूद हैं ।


शिमला समझौता क्या है?

  • परिप्रेक्ष्य: यह समझौता 1971 के युद्ध के तुरंत बाद दोनों देशों के स्थायी शांति एवं सहयोग हेतु साइन किया गया था।

  • मुख्य प्रावधान:

    1. द्विपक्षीय समाधान: दोनों पक्ष किसी भी विवाद का समाधान केवल शांतिपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता से करेंगे, और तृतीय पक्ष की मध्यस्थता को अस्वीकार करेंगे।

    2. नयी नियंत्रण रेखा: 17 दिसंबर 1971 को लागू युद्धविराम रेखा को “कंट्रोल लाइन” (LoC) के रूप में मान्यता दी गई, जिसे बिना आपसी सहमति बदलना अनुचित माना गया ।

    3. कैदी एवं भूभाग वापसी: युद्ध में कैद हुए सैनिकों और बंदियों के प्रत्यावर्तन तथा कुछ भूभागों का वापसी से संबंधित व्यवस्था की गई ।


पाकिस्तान की धमकी और रद्दीकरण का दायरा

  • ताज़ा स्थिति: 24 अप्रैल 2025 को पाकिस्तान ने कूटनीतिक जवाबी कार्रवाई में शिमला समझौते को “स्थगित” करने की घोषणा की, साथ ही सभी द्विपक्षीय संधियों की समीक्षा का ऐलान किया।

  • आधिकारिक बयान: पाक विदेश मंत्री इशाक डार ने चेतावनी दी कि यदि भारत सिंधु जल संधि में “हस्तक्षेप” करता है तो शिमला समझौते समेत अन्य समझौते “अवैध” हो सकते हैं।

  • पक्षपात व प्रचार: पाकिस्तान की मीडिया ने इसे राष्ट्रीय भावना जगाने वाला कदम बताया, जबकि भारत ने इसे “रणनीतिक ब्लफ़” करार दिया ।

इस क़दम से भारत पर प्रभाव

1. राजनयिक एवं राजनीतिक असर

  • वार्ता चैनल बाधित: शिमला समझौता ही दोनों देशों के बीच संवैधानिक कूटनीतिक संवाद की रूपरेखा निर्धारित करता है; इसमें लचीलापन कम होने से उच्चस्तरीय वार्ता ठप होने का खतरा है ।

  • क्षेत्रीय स्थिरता: समझौते के आधार पर संयुक्त राष्ट्र के पर्यवेक्षक मिशन (UNMOGIP) की नैतिक मान्यता प्रभावित हो सकती है, जिससे कश्मीर मुद्दे पर बाहरी मॉनिटरिंग चुनौतीपूर्ण हो जाएगी।

2. सीमा प्रबंधन और सुरक्षा

  • LoC संचालन: नियंत्रण रेखा पर शांति वार्ता का एक औपचारिक आधार जाएगा, जिससे सीमापार गोलीबारी एवं आक्रामक हरकतों में इजाफा हो सकता है।

  • सुरक्षा सद्भाव: सीमापार वार्ता बंद होने से सैनिक गतिरोध और स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

3. आर्थिक और जल अधिकार

  • जल साझेदारी पर खतरा: शिमला समझौते के रद्द होने का आकलन सिंधु जल संधि जैसी स्थिर अग्रीमेंट्स को भी क्षति पहुंचा सकता है, जिससे भारत के यहाँ सिंचाई योजनाओं पर दबाव बढ़ सकता है।

  • व्यापार व निवेश: द्विपक्षीय व्यापार बाधित होगा, वास्तविक असर सीमित गलियारे (जैसे जालंधर-कराची मार्ग) और व्यापारिक साझेदारों पर दिखाई देगा।

4. अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और कानूनी चुनौतियाँ

  • कानूनी वैधता: अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार ऐसे द्विपक्षीय संधि को एकतरफा रद्द करना जटिल है; दोनों पक्षों की सहमति आवश्यक होती है।

  • वैश्विक छवि: इस कदम से पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठेंगे, वहीं भारत “कठोर रुख” अपनाने में समर्थ दिखेगा, जो दोनों देशों की छवि पर विविध प्रभाव डाल सकता है।

निष्कर्षतः, पाकिस्तान द्वारा शिमला समझौते को रद्द करने की धमकी से दोनों परमाणु-शक्ति देशों के बीच शांति वार्ता, सीमा प्रबंधन और द्विपक्षीय आर्थिक-जल साझेदारी पर गहरा असर पड़ेगा, जबकि अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत इसका एकतरफा क्रियान्वयन मुश्किल रहेगा।

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