
— तराई क्रांति समाचार ब्यूरो
कर्नाटक के डिप्टी सीएम एवं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार हाल के महीनों में लगातार मंदिरों का दौरा कर रहे हैं, जिससे उनके अपने ही पार्टी गुटों में नाराज़गी और संदेह पैदा हो गया है। उन्होंने चामराजनगर के श्री माले महादेवश्वरा मंदिर, श्री क्षेत्र धार्मस्थल, सुत्तर मठ जैसी धार्मिक स्थलों के साथ प्रयागराज कुंभ मेले में स्नान और कोयम्बत्तूर में ईशा फाउंडेशन के महाशिवरात्रि कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया। इस दौरान उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के साथ मंच साझा किया, जिस पर कभी कभार सहयोगी रहे केएन राजन्ना ने “मिश्रित संदेश” देने का आरोप लगाया, कटु आलोचना के बीच शिवकुमार ने सफाई दी, “मैं हिंदू जन्मा हूं और हिंदू ही मरूंगा, लेकिन मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूं।”, उनके बड़े भाई एवं पूर्व सांसद डीके सुरेश ने इसे निजी श्रद्धा का प्रदर्शन बताया, न कि किसी राजनीतिक अभिव्यक्ति का हिस्सा।
मंदिर दर्शन का सिलसिला
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जनवरी 2025 से शिवकुमार ने प्रयागराज कुंभ मेले में पवित्र स्नान किया, फिर चामराजनगर में दंडुकोला सेवा करते हुए श्री माले महादेवश्वरा मंदिर में पूजा-अर्चना की।
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इसके अलावा उन्होंने श्री क्षेत्र धार्मस्थल में भगवान मंजुनाथ की पूजा की और सलुरु बृहन्मठ के संतों से मुलाकात की।
कांग्रेस में गुटबाजी
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कर्नाटक कांग्रेस में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया समर्थक गुट और डीके शिवकुमार समर्थक गुट के बीच विभाजन गहरा चुका है, जहां शिवकुमार सीएम पद के लिए दबाव बना रहे हैं।
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दिल्ली नेतृत्व ने फिलहाल शिवकुमार को प्रदेश अध्यक्ष बने रहने की इजाज़त दे रखी है, जिससे सिद्धारमैया के करीबी मंत्रियों में नाराज़गी बनी हुई है।
राजनीतिक मायने
हिंदुत्व राजनीति का असर
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विश्लेषकों का मानना है कि शिवकुमार अपने हिंदू धर्म की पहचान को भाजपा के हिंदुत्व narrative के मुकाबले खुद को मजबूत दिखाने के काम में लगा रहे हैं।
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प्सीफालोजिस्ट सन्दीप शास्त्री के अनुसार, ये गतिविधियाँ धार्मिक विश्वास का प्रतीक हैं लेकिन चुनावी हिंदू वोटबैंक को साधने का भी संदेश देती हैं।
नेतृत्व पर दबाव
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शिवकुमार ने इशारा किया है कि यदि उन्हें सीएम पद नहीं दिया गया तो वे अन्य राजनीतिक विकल्प तलाशने से गुरेज़ नहीं करेंगे।
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इससे पहले मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के विद्रोह से कांग्रेस को सत्ता खोनी पड़ी थी, जब उनके 22 विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे।
डीके शिवकुमार की धार्मिक गतिविधियाँ और पार्टी नेतृत्व के बीच के मतभेद यह सवाल जगाते हैं कि क्या ये निजी श्रद्धा का प्रदर्शन हैं या आगामी नेतृत्व मुकाबले में रणनीतिक औजार? इस बहस का असर न सिर्फ कर्नाटक में कांग्रेस की एकता पर बल्कि पूरे देश में उसकी सेक्युलर छवि पर भी पड़ सकता है।