
विजय गर्ग द्वारा लिखित “शहरों का घुटता आसमान” नामक लेख में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर और इसके दुष्प्रभावों पर गहन चर्चा की गई है। लेख में बताया गया है कि कैसे वाहनों, कारखानों और पटाखों से निकलने वाले जहरीले धुएं में कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी गैसें और सीसे के कण शामिल होते हैं, जो वातावरण को विषाक्त बना देते हैं। ये प्रदूषक तत्व विशेष रूप से बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डालते हैं।
दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में पराली जलाने और दीवाली पर पटाखों की आतिशबाजी के कारण वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है। राजस्थान के कोटा शहर का उदाहरण देते हुए, लेख में उल्लेख किया गया है कि दीवाली की रात वहां की हवा में जहरीले कणों की मात्रा मानक स्तर से सात गुना अधिक पाई गई।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) वायु प्रदूषण को ‘पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी’ घोषित करता है, क्योंकि इसके कारण हर साल विश्व में करीब सात करोड़ लोगों की मृत्यु होती है। शोध से पता चला है कि वायु प्रदूषण न केवल फेफड़ों पर, बल्कि शरीर के हर अंग पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिससे तनाव, अवसाद, डिमेंशिया, गर्भपात, ब्रोंकाइटिस, अनिद्रा, यकृत कैंसर, प्रजनन क्षमता में कमी, उच्च रक्तचाप और हृदयरोग जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं।
लेख में यह भी बताया गया है कि गंगा के मैदानी इलाकों में रहने वालों की औसत उम्र में वायु प्रदूषण के कारण साढ़े तीन से सात वर्ष तक की कमी हो रही है। विजय गर्ग ने पारंपरिक मान्यताओं का हवाला देते हुए पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया है और वर्तमान जीवनशैली में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया है।
इस प्रकार, लेख वायु प्रदूषण की गंभीरता और इसके व्यापक प्रभावों पर प्रकाश डालता है, साथ ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।