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जज के बंगले से कैश मिलने का मामला: सुप्रीम कोर्ट ने शुरू की जांच

बार एसोसिएशन ने जताई आपत्ति

— तराई क्रांति समाचार ब्यूरो

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से 15 करोड़ रुपये नकद बरामद होने के मामले ने न्यायपालिका में भूचाल ला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए इंटरनल जांच शुरू कर दी है। इस घटना को लेकर बार एसोसिएशन और वरिष्ठ वकीलों ने भी सवाल खड़े किए हैं।

कैसे सामने आया मामला?

14 मार्च को होली की रात दिल्ली के लुटियंस जोन में स्थित जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले में आग लग गई थी। आग बुझाने पहुंची दिल्ली फायर सर्विस की टीम ने वहां भारी मात्रा में कैश देखा और इसकी सूचना दी। हालांकि, बाद में दिल्ली फायर सर्विस प्रमुख अतुल गर्ग ने कहा कि उन्होंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है कि कैश नहीं मिला था।

CBI की पुरानी जांच भी उठी सवालों में

इससे पहले, 2018 में जस्टिस वर्मा का नाम गाजियाबाद की सिम्भावली शुगर मिल में हुए 97.85 करोड़ रुपये के घोटाले से भी जुड़ा था। CBI ने उनके खिलाफ FIR दर्ज की थी। यह मामला ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स द्वारा दायर एक शिकायत से जुड़ा था, जिसमें कहा गया था कि किसानों के लिए जारी लोन का गलत इस्तेमाल हुआ। जस्टिस वर्मा उस समय कंपनी के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे। हालांकि, जांच धीमी पड़ गई और फरवरी 2024 में अदालत के आदेश पर इसे दोबारा शुरू किया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को पलट दिया।

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की प्रतिक्रिया

दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय ने इस मामले पर अपनी इंटरनल इन्क्वायरी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना को सौंप दी है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक आधिकारिक बयान में कहा कि जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन अफवाहें फैलाई जा रही हैं।

बार एसोसिएशन और नेताओं की कड़ी प्रतिक्रिया

इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा के तबादले को लेकर नाराजगी जताई है। एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने कहा, “अगर किसी आम नागरिक के घर से 15 लाख रुपये भी मिलते, तो उसे जेल भेज दिया जाता। हम जस्टिस वर्मा का स्वागत नहीं करेंगे।”

सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह ने कॉलेजियम के निर्णय में पारदर्शिता की मांग करते हुए कहा कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि कैश किन परिस्थितियों में मिला।

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने भी इस मुद्दे को संसद में उठाया और न्यायपालिका में जवाबदेही की मांग की। भाजपा आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने भी जस्टिस वर्मा के यूपी में कार्यकाल के दौरान अखिलेश यादव सरकार से उनके संबंधों पर सवाल खड़े किए।

क्या होगा आगे?

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जांच शुरू कर दी है और इंटरनल रिपोर्ट के आधार पर अगली कार्रवाई की जाएगी। सवाल यह है कि क्या इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत कानूनी कार्रवाई होगी या नहीं।

न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता को लेकर उठ रहे इन सवालों के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या कदम उठाता है।

 

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