कर्नाटक में मुस्लिम ठेकेदारों को सरकारी टेंडर्स में 4% आरक्षण: सिद्धारमैया कैबिनेट से प्रस्ताव पास, कानून इसी सत्र में बदला जाएगा
नए संशोधन से सरकारी ठेकों में आरक्षण का कुल हिस्सा बढ़कर 47% हो जाएगा; बीजेपी ने इसे तुष्टिकरण की राजनीति करार दिया

कर्नाटक में सरकारी ठेकों (पब्लिक टेंडर्स) में आरक्षण की व्यवस्था पहले से ही लागू है:
- SC/ST ठेकेदारों के लिए: 24%
- OBC वर्ग-1 के लिए: 4%
- OBC वर्ग-2A के लिए: 15%
इस मौजूदा संरचना में यदि मुस्लिम ठेकेदारों को 4% आरक्षण (कैटेगरी 2B) प्रदान किया जाता है, तो कुल आरक्षण बढ़कर 47% हो जाएगा। साथ ही, ठेकों की अधिकतम राशि को 2 करोड़ रुपये तक बढ़ाने का भी प्रस्ताव है।
मुख्य बिंदु और प्रस्ताव के चरण
- कानूनी संशोधन: कर्नाटक ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक प्रोक्योरमेंट्स एक्ट, 1999 में संशोधन के जरिए इस प्रस्ताव को मौजूदा बजट सत्र में पेश किया जाएगा।
- कैबिनेट की मंजूरी: सिद्धारमैया कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को पास कर लिया है, जिससे कानून में बदलाव की राह प्रशस्त हो गई है।
- वित्तीय और तकनीकी पहल: संशोधन के तहत ठेकों के आरक्षण का ढांचा निखारा जाएगा, जिससे मुस्लिम ठेकेदारों को 4% आरक्षण मिलेगा।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और विवाद
- बीजेपी की प्रतिक्रिया: विपक्षी दल बीजेपी ने इस कदम पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए आरोप लगाया है कि यह तुष्टिकरण की राजनीति है और संविधान के विरुद्ध जा सकता है।
- विरोधी दल की टिप्पणियाँ: अन्य अल्पसंख्यक समुदायों और ठेकेदारों ने भी इस प्रस्ताव पर सवाल उठाया है कि क्या केवल मुसलमानों को ही अल्पसंख्यक मानकर विशेष आरक्षण दिया जाना उचित है।
इतिहास एवं पृष्ठभूमि
सिद्धारमैया सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल (2013-18) में भी आरक्षण की नीतियों को अपनाया था। इस बार भी, सरकार का उद्देश्य अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्ग और दलित समुदाय के समर्थन को सुदृढ़ करना है, जो उनके वोट बैंक का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
आगे की प्रक्रिया
- विधायी सत्र में प्रस्ताव: मौजूदा बजट सत्र में इस संशोधन प्रस्ताव को प्रस्तुत किया जाएगा।
- संशोधन की प्रभावशीलता: प्रस्ताव पारित होने के पश्चात, कानून में संशोधन के साथ-साथ सरकारी ठेकों में आरक्षण का नया ढांचा लागू कर दिया जाएगा।
निष्कर्ष
यह प्रस्ताव कर्नाटक की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यदि यह संशोधन पारित हो जाता है, तो न केवल मुस्लिम ठेकेदारों को समर्थन मिलेगा, बल्कि राज्य की सरकारी ठेकों में आरक्षण के ढांचे में व्यापक बदलाव आएगा। वहीं, विपक्षी दलों द्वारा इसे तुष्टिकरण की राजनीति का हिस्सा बताया जा रहा है, जिससे आगामी राजनीतिक सत्र में और भी बहसें तेज हो सकती हैं।