
— तराई क्रांति समाचार ब्यूरो
भाजपा ने आगामी राष्ट्रीय जनगणना में विस्तृत जाति आंकड़े शामिल करने को 11 साल पुरानी योजना का “ऐतिहासिक” फल बताया, जिसमें हर समुदाय को लक्षित विकास और सामाजिक न्याय में सशक्त करने की नीयत उजागर हुई है आज तक; वहीं कांग्रेस–समाजवादी पार्टी–राजद जैसे विपक्षी दलों ने 50% आरक्षण सीमा पार करने का दबाव बनाए रखा और यह सवाल उठाया कि 2019 में 8,254 करोड़ की लागत का दावा करके इस बार मात्र 575 करोड़ का बजट क्यों रखा गया, साथ ही जनगणना की समय-सीमा भी अस्पष्ट है
भाजपा की प्रतिक्रिया
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ऐतिहासिक पहल
भाजपा का कहना है कि विस्तृत जातिगत जनगणना पर पिछले 11 सालों से काम चल रहा था और यह “एकाएक” नहीं लिया गया फैसला है। -
लक्ष्य–लुभावना विकास
सरकार का तर्क है कि इससे हर समुदाय को सशक्त बनाने में मदद मिलेगी और लक्षित सामाजिक विकास की राह आसान होगी -
सामाजिक न्याय का एजेंडा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 11 साल से सामाजिक न्याय सरकार की केंद्रीय नीति रही है; इसी कड़ी में ओबीसी आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का निर्णय लिया गया था। -
निर्वचनात्मक राजनीति से दूरी
भाजपा प्रवक्ता धर्मेंद्र प्रधान ने आरोप लगाया कि नेहरू–राजीव गांधी ने जातीय आरक्षण का विरोध किया और कांग्रेस को देश से माफी मांगनी चाहिए।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
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राहुल गांधी का दावा
राहुल गांधी ने कहा कि यह घोषणा कांग्रेस के “मिशन” की जीत है, लेकिन तब तक आरक्षण की 50% सीमा नहीं हटाई जाएगी तब तक यह अधूरी ही रहेगी। -
बजट और समय-सीमा पर सवाल
कांग्रेस ने पूछा कि 2019 में 8,254 करोड़ रुपये खर्च का आंकड़ा बताया गया था, पर इस साल बजट में सिर्फ 575 करोड़ क्यों? साथ ही जनगणना की समय-सीमा स्पष्ट नहीं की गई । -
50% कैप हटाने की मांग
इंडिया ब्लॉक के दलों (कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, राजद आदि) ने आरक्षण सीमा 50% से ऊपर ले जाने की संवैधानिक संशोधन बिल लाने की मांग उठाई है। -
“राजनीतिक एटीएम” आरोप
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने पूछा कि जब 2011 में ग्रामीण भारत की जाति–आधारित जनगणना हुई थी, तब इसके आंकड़े क्यों नहीं जारी किए? उन्होंने इसे भाजपा का “राजनीतिक एटीएम” करार दिया।
आगे की चुनौतियाँ और संभावित प्रभाव
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डेटा की विश्वसनीयता: पिछली 2011 की सर्वे में आंकड़े सार्वजनिक नहीं हुए, जिससे इस बार की पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।
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राजनीतिक समीकरण बदले: बिहार जैसे जातिसंवेदनशील राज्यों में यह कदम आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में वोटों के समीकरण को नई दिशा दे सकता है।
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संवैधानिक संशोधन: 50% आरक्षण कैप हटाने के लिए संविधान में बदलाव की प्रक्रिया लंबी और जटिल होगी, जिस पर विपक्ष आगे दबाव बनाए रखेगा।
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सामाजिक एकता बनाम विभाजन: कुछ आलोचक मानते हैं कि विस्तृत जातिगत आंकड़े सामाजिक विभाजन बढ़ा सकते हैं, जबकि समर्थक इसे सच्चा सामाजिक न्याय मानते हैं।
इस प्रकार, केंद्र सरकार की जाति जनगणना की घोषणा ने राजनीतिक दलों के बीच श्रेय की लड़ाई तेज कर दी है, जहाँ भाजपा इसे ऐतिहासिक उपलब्धि बता रही है और विपक्ष इसे अधूरी घोषणा मानकर 50% आरक्षण सीमा हटाने की मांग कर रहा है।