
— तराई क्रांति समाचार ब्यूरो
उत्तर प्रदेश में बसपा सुप्रीमो मायावती ने 13 साल बाद एक बार फिर से भाईचारा कमेटी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस नए फेज में एससी, एसटी और ओबीसी समुदायों को शामिल किया जाएगा। इससे पहले 2017 में बनी भाईचारा कमेटी, जिसमें हर जाति को शामिल किया गया था, को बाद में भंग कर दिया गया था।
पूर्व रणनीति:
2017 में बसपा ने एक भाईचारा कमेटी बनाई थी, जिसमें दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक समेत सभी जातियों को शामिल किया गया था। उस समय इसे संगठन का मजबूत आधार माना गया था।
भंग का प्रभाव:
बाद में इस कमेटी को भंग कर दिया गया, जिससे पार्टी के वोटबैंक में कमी देखने को मिली। इसी कारण 2022 के विधानसभा चुनावों में भी बसपा को कमजोर प्रदर्शन का सामना करना पड़ा।
नया कदम और रणनीति:
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मायावती ने हाल ही में घोषणा की है कि बसपा में भाईचारा कमेटी को पुनः स्थापित किया जाएगा। पहले चरण में एससी, एसटी और ओबीसी को जोड़ा जाएगा, ताकि पिछड़े वर्गों का एकजुट आधार मजबूत हो सके।
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आगामी दिनों में अन्य जातियों, जैसे मुस्लिम और ब्राह्मण, को भी इस कमेटी में शामिल करने का विचार रखा जा रहा है। इससे पार्टी का आधार व्यापक और समग्र होगा।
संगठनात्मक संरचना:
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मंडल और जिला स्तर:
नई भाईचारा कमेटियां मंडल और जिला स्तर पर गठित की जाएंगी। हर जिले में दो संयोजक नियुक्त किए जाएंगे – एक ओबीसी और एक एससी से – ताकि क्षेत्रीय स्तर पर बेहतर समन्वय स्थापित हो सके। -
आगामी मीटिंग:
मायावती 25 मार्च को प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक बुलाएंगी, जिसमें कमेटी के गठन के दिशा-निर्देश और जिम्मेदारियों का विवरण साझा किया जाएगा।
राजनीतिक संदर्भ और संभावित प्रभाव:
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वोटबैंक का पुनर्निर्माण:
इस रणनीति से उम्मीद की जा रही है कि दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्गों का एकजुट समर्थन प्राप्त हो, जो आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। -
संदेश:
यह कदम दर्शाता है कि बसपा अपने पुराने वोटबैंक को पुनः सक्रिय करने के लिए नए तरीके अपना रही है और यह स्पष्ट संदेश दे रही है कि वह वही असली हितैषी दल है।
निष्कर्ष:
बसपा में भाईचारा कमेटी की वापसी पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक बदलाव है, जो न केवल संगठनात्मक संरचना को मजबूत करेगा बल्कि आगामी चुनावों में भी पार्टी के प्रदर्शन में सुधार की संभावना को बढ़ाएगा।