बोर्डिंग में पढ़ाई और चीनी सीखने की बाध्यता: बीजिंग द्वारा तिब्बती संस्कृति मिटाने की कूटनीति
बीजिंग की शैक्षिक नीतियों में तिब्बती बच्चों को बोर्डिंग स्कूलों में भेजकर मंदारिन भाषा सिखाने का प्रावधान, जिससे तिब्बती भाषा, संस्कृति और पहचान पर खतरा मंडरा रहा है।

बोर्डिंग में पढ़ाई और चीनी सीखने की बाध्यता: कैसे बीजिंग तिब्बत की पहचान मिटाने के लिए पढ़ाई का सहारा ले रहा है
— तराई क्रांति समाचार ब्यूरो
चीन तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करने के लिए शिक्षा का उपयोग कर रहा है। तिब्बती बच्चों को उनके परिवारों से अलग करके बोर्डिंग स्कूलों में भेजा जा रहा है, जहां उन्हें चीनी भाषा (मंदारिन) में शिक्षा दी जाती है। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों और तिब्बती कार्यकर्ताओं के अनुसार, यह कदम तिब्बती भाषा, संस्कृति और बौद्ध धर्म से बच्चों को दूर करने का प्रयास है।
इन स्कूलों में तिब्बती बच्चों को उनकी मातृभाषा और सांस्कृतिक परंपराओं से दूर रखा जाता है, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान कमजोर होती है। चीनी अधिकारियों का दावा है कि ये स्कूल बच्चों को आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिए आवश्यक कौशल सिखाने और चीनी भाषा में पारंगत बनाने में सहायक हैं। हालांकि, तिब्बती संस्थाएं इसे बच्चों को उनकी पहचान से दूर करने की कोशिश मानती हैं।
इसके अलावा, चीन ने तिब्बत में तिब्बती भाषा में शिक्षा देने वाले निजी स्कूलों को बंद करना शुरू कर दिया है, जिससे तिब्बती बच्चों के पास अपनी भाषा और संस्कृति सीखने के अवसर कम हो रहे हैं। सार्वजनिक स्थानों पर मंदारिन भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे तिब्बती भाषा और संस्कृति पर और अधिक दबाव पड़ रहा है।
इन नीतियों के परिणामस्वरूप, तिब्बती बच्चों के भारत में तिब्बती चिल्ड्रेन विलेज जैसे संस्थानों में आने की संख्या में भी कमी आई है। उदाहरण के लिए, 2008 से पहले हर साल 700-800 तिब्बती छात्र धर्मशाला स्थित तिब्बती चिल्ड्रेन विलेज में आते थे, लेकिन हाल के वर्षों में यह संख्या घटकर शून्य हो गई है।
इन प्रयासों से स्पष्ट होता है कि चीन शिक्षा प्रणाली का उपयोग करके तिब्बत की सांस्कृतिक पहचान को मिटाने का प्रयास कर रहा है, जिससे तिब्बती भाषा, परंपराएं और सांस्कृतिक धरोहर खतरे में पड़ गई हैं।